सीधी सरल फिर भी अलग ...

"सास बहू अचार प्रायवेट लिमिटेड"इस सीरीज ने मुझे आकर्षित किया - ‘अचार’ शब्द की वजह से। ‘अचार’ नाम सुनते ही बचपन की सारी यादें ताजा हो गई। हमारे घर में अचार बनाना एक जश्न के जैसा होता था। जून के आखरी हफ्ते में पहली बारिश के बाद हमारी मां इतवारा बाजार (साप्ताहिक बाजार) से खास अचार की ‘रामकेला कैरी’ लेकर आती थीं, और सोमवार के दिन अचार बनाया जाता था ।दो-तीन इतवार यह अचार कार्यक्रम चलता था आखिरकार 500-700कैरी का विभिन्न मसालों के फ्लेवर वाला अचार बनाकर हमारे अलावा पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्तों में बांटा जाता था। देशभर में फैले अम्मा के बच्चे (यानि हमारे दोस्त) अचार के लिए एडवांस बुकिंग करते थे। 15दिन पहले से अचार के मसालों की तैयारी की जाती थी। हम बच्चे अम्मा के हाथ के नीचे काम करते थे और हमें बड़ा मज़ा आता था। मेरी यादों से इज तरहा से जुडा हुआ ‘अचार’ इस सीरिज का केन्द्र बिन्दु है। यहां अचार रिश्तों को जोड़ता है। सास, बहू और शुक्ला जी अचार के बहाने एक दूसरे से जुड़ते हैं और अपना बिजनेस खड़ा करते हैं। टीवी पर आनेवाले सासबहु के आम हिंदी सीरियल से अलग हटकर इस सीरिज की कहानी है इसमें सास बहू के सम्बन्ध बहुत ही सुन्दर बताये हैं| सास को अपनी तलाकशुदा बहू से प्यार है। वह अपनी बहू की खासियतों और कमियों को अच्छे से जानती है। वे सुमन को प्रोत्साहित करती है, कभी पैसे की मदद करती है और जरूरत पर भावनात्मक सपोर्ट भी करती हैं। इस सीरिज में मुख्य भूमिका में चार महिलाएं हैं - सुमन, उसकी सास, सुमन की बेटी जूही और जुही की सौतेली मां| मगर इसमे कोई भी महिला 'विलेन' नहीं दिखाई है | सभी महिलाओं का आपस में एक दृश्य-अदृश्य रिश्ता है| वे अपनी भूमिकाओं को अच्छे से निभा रही हैं |किसी को एक दूसरे से शिकायत जरूर है, मगर नाराज़ी नहीं है ।
"सासबहु.." वेबसीरिज की कहानी बहुत ही सीधी सरल दिखाई देती है लेकिन वैसी है नहीं। सुमन(अमृता सुभाष)एक तलाकशुदा महिला है , उसके दो बच्चे अपने पिता के पास रहते हैं । सुमन को अपने पैरों पर खड़े होना है और बच्चों को अपने पास लाना है। सुमन ना तो ज्यादा पढ़ी लिखी है, ना ही उसके पास कोई स्किल है। वह कहती है – ‘बचपन से ये ही सिखाया गया था कि पति, बच्चे और घर ये ही तुम्हारी दुनिया होगी,एक दिन एक राजकुमार घोड़े पर आयेगा और तुम्हें शादी करके ले जायेगा।‘ सुमनने ना तो ठीक से पढ़ाई की है और ना दूसरा कोई काम। लेकिन यह सच नहीं है - सुमन को अच्छे से अच्छा अचार बनाना आता है, अपने इसी स्किल को सुमन अपने जीवन का आधार बनाती है।
सुमन घर छोड़ कर अकेले रहती है, उसकी सास(यामिनी दास) अपने बेटे दिलीप(अनुप सोनी) के पास रहती है। सुमन बहुत ही आत्मविश्वासपूर्ण महिला है। वह अपने पति का घर छोड़ने के बाद रोते नहीं बैठती। उसका विश्वास है कि अचार का धंधा अच्छा चल निकलेगा, और वह बच्चों को भी अपने पास रखना चाहती है। हालांकि उसे खूब संघर्ष करना पड़ता है।
बेटी और सगी मां का रिश्ता भी अच्छा है। वे जब भी मिलती हैं मजे से मिलती हैं, बेटी को अपनी मां से शिकायत नहीं है| मां की परिस्थिति और पिता के स्वभाव को बेटी समझती है, मगर मां का घर छोड़कर जाना उसे पसंद नहीं है। लेकिन आर्थिक कारण दिखाते हुए पिता बच्चों को अपने पास रखता है।
सुमन उसके पड़ोस में रहने वाले शुक्ला जी से अचार बेचने में मदद मांगती है| शुक्ला जी बस में बेल्ट ,कंघा,पर्स जैसी छोटे मोटे सामान बेचने का धंधा करते हैं | वो मदद करने का वायदा तो करते हैं, लेकिन लालच में पड़कर सुमन की चोरी से बस में अचार बेचकर फायदा लेते हैं। जब सुमन को उनकी चालाकी का पता चलता है, तो वह बहुत नाराज होती है| बाद में सुमन और शुक्लाजी अच्छे सहयोगी बनते हैं| यहां किसी फिल्मी कहानी के जैसे उनके बीच इमोशनल या फिजिकल आकर्षण वगैरह नहीं दिखाया गया,यह इस सीरिज की अच्छाई है।

इसके अलावा सीरिज की कुछ घटनाएं जो मुझे छू गई मैं यहां उल्लेखित करना चाहती हूं।

  • सुमन के पूर्व पति दिलीप को जब पता चलता है कि है कि सुमन के बिजनेस में उसकी मां भी सहयोग करती है, तब उसके अहं को चोट लगती है (वह स्वयं भी एक अचार कंपनी में नौकरी करता है) एक दिन वह गुस्से में मां की कपाट का सामान फेंकने लगता है,तब उसकी बीबी मनीषा उसे रोकती है| उसी समय गुस्से में बेटी जूही कहती है ‘ -फेंकने दो, पहले मेरी मां को घर से निकाला, अब दादी को निकाल रहे हैं, एक दिन आपको भी निकाल देंगे|’ गुस्से में दिलीप बेटी के गाल पर थप्पड़ मारता है और उसी समय मनीषा दिलीप के गाल पर जोर से थप्पड़ मारती है, वातावरण एकदम शांत हो जाता है। मनीषा और जूही दोनों एक तरफ हैं और दिलीप दूसरी तरफ।
  • सुमन के पति की दूसरी पत्नी है मनीषा(अंजना सुखानी) - जो समझदार और संवेदनशील महिला है। सुमन के बच्चे अपने पिता और दूसरी मां के पास (जिसे हमारे समाज में सौतेली मां कहते हैं) रहते हैं। बच्चों का इस मां के साथ प्यार भरा रिश्ता है। क्लास की फीस भरने के लिए बारहवीं में पढ़ने वाली बड़ी बेटी जूही अपनी सौतेली मां के पैसे (25 हजार रुपए) चोरी करती है| बिना हल्ला गुल्ला किये वह जूही को समझाती है और उसका डर निकाल देती है।
  • आखिरी एपीसोड में मनीषा और सुमन बगीचे में मिलते हैं| इस बातचीत के तुरंत बाद मनीषा घर पहुंचती है और जूही से कहती "मम्मी बाहर खड़ी हैं जाकर मिल लो" जूही बाहर जाकर मां के गले मिलती है दोनों खूब रोती हैं| जूही कहती है "आप मेरी बेस्ट फ्रेंड हो" सुमन कहती है "बेस्ट फ्रेंड तो कोमल है ना तेरी",जूही कहती है "हां आप मेरी दूसरी बेस्ट फ्रेंड हो" सुमन हंसते हुए कहती हैं "देखो यहां भी मैं दूसरे नंबर पर ही आई हूं"। दिलीप (सुमन का ExHusbend) बाहर आकर सुमन को घर में ले जाता है।सुमन उसके साथ बहुत ही हल्केपन और मजाकिया लहजे में बात करती है| सुमन अपने बॅग से दिलीप के घर की चाबी निकालकर टेबल पर रखती है।
  • आखिरी सीन में सुमन अपना मंगलसूत्र, सिन्दूर सब तालाब में बहा देती है, जैसे वह अपने सारे बंधनों से मुक्त हो गई है| वह अपनी आजादी की गहरी सांस लेती है - पीछे उसकी सास,बेटा रिषभ और शुक्ला जी हैं।
"सासबहु.."  अपने आसपास फैली हुई तमाम कहानियों में से एक कहानी लगती है। सुमन का घर और बच्चों को छोड़कर जाने के बाद का संघर्ष हमें दिखाई देता है | शादी के बाद और तलाक के पहले के 17-18 साल सुमन ने क्या झेला होगा, यह हमें उसके के चेहरे से साफ दिखाई देता है। हमारे घर काम करने वाली मौसी हो, भाजी वाली हो,महिला मंडल की सदस्य हो, या चाईनीज भेल बनाने वाली कोई आंटी हो; इन सभी की कहानी लगभग सुमन की कहानी लगती है। शादी के पहले किसी ‘राजा की रानी’ बनने का सपना देखा था और कुछ समय बाद ही सपना टूट गया। इन सभी ने खूब सालों टक समझौता किया, संघर्ष किया और आज पति से अलग होकर अपने आत्मविश्वास से जी रही हैं| भले ही गरीबी हो, जीने के लिए रोज भागदौड़ करना पड़ रहा हो, लेकिन उनका स्वाभिमान उनके साथ है|


भारती दीवान  

स्त्रीवादी कार्यकर्ती  

1 Comments

  1. बहुत खूब लिखा है आपने. सिरियल की विशेषतः अच्छी से समज में आती है.

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